आज भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की 129 वीं जयंती है। वह ही थे जिन्होंने दलितों के साथ समाज में होने वाले भेदभाव का विराध किया और इसके लिए अभियान भी चलाया था। भीमराव को आजाद भारत के पहले कानून मंत्री होने का श्रेय भी जाता है। 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू में जन्मे भीमराव आंबेडकर का 6 दिसंबर 1956 को निधन हुआ था। महर जाति में जन्में बाबा साहेब ने बचपन से ही जातिवाद को झेला।
दलित होने के कारण उन्हें प्रारंभिक शिक्षा लेने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्कूल में जब दूसरे बच्चे पानी पीते थे तो उन्हें वहां पानी पीने और बर्तन छूने तक की इजाजत नहीं थी। अपने सभी भाई-बहनों में पढ़ाई में सबसे अच्छे थे। वह अपने इलाके के अकेले विद्यार्थी थे, जो परिक्षा में पास होकर हाईस्कूल तक पहुंचे। जब वह नौवी कक्षा में थे तब उन्हें उनके एक शिक्षक ने उन्हें जातिवाद का दंश झेलने को लेकर उन्हें उनका उपनाम अपनाने की सलाह दी।
दलित होने के कारण उन्हें प्रारंभिक शिक्षा लेने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्कूल में जब दूसरे बच्चे पानी पीते थे तो उन्हें वहां पानी पीने और बर्तन छूने तक की इजाजत नहीं थी। अपने सभी भाई-बहनों में पढ़ाई में सबसे अच्छे थे। वह अपने इलाके के अकेले विद्यार्थी थे, जो परिक्षा में पास होकर हाईस्कूल तक पहुंचे। जब वह नौवी कक्षा में थे तब उन्हें उनके एक शिक्षक ने उन्हें जातिवाद का दंश झेलने को लेकर उन्हें उनका उपनाम अपनाने की सलाह दी।

भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर - फोटो : self
आंबेडकर ने अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से 1913 में डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में पोस्टग्रेजुएशन के लिए अमेरिका गए। इसके बाद साल 1916 में उन्हें एक शोध के लिए पीएचडी से सम्मानित किया गया। अंबेडकर लंदन से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट करना चाहते थे, लेकिन उनका यह सपना बीच में ही अधूरा रह गया। उनकी स्कॉलरशिप खत्म हो गई थी, जिस वजह से उन्हें पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत वापस आना पड़ा था।
भारत वापस लौटकर आंबेडकर ट्यूटर बनने से लेकर कंसल्टिंग का काम शुरू किया, लेकिन सामाज में भेदभाव की वजह से उन्हें इसमें सफलता न मिल सकी। इसके बाद वह मुंबई के सिडनेम कॉलेज में प्रोफैसर नियुक्त हुए। फिर 1923 में उन्होंने 'द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी' नाम से एक शोध किया, जिसके लिए उन्हें लंदन यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर्स ऑफ साइंस की उपाधि दी। इसके बाद साल 1927 में उन्हें कोलंबंनिया यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें पीएचडी की डिग्री दी गई। आंबेडकर के लिए यह सफर इतना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने सामाज के आगे घुटने नहीं टेके और यही कारण है कि वह निरंतर आगे बढ़ते गए।
भारत वापस लौटकर आंबेडकर ट्यूटर बनने से लेकर कंसल्टिंग का काम शुरू किया, लेकिन सामाज में भेदभाव की वजह से उन्हें इसमें सफलता न मिल सकी। इसके बाद वह मुंबई के सिडनेम कॉलेज में प्रोफैसर नियुक्त हुए। फिर 1923 में उन्होंने 'द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी' नाम से एक शोध किया, जिसके लिए उन्हें लंदन यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर्स ऑफ साइंस की उपाधि दी। इसके बाद साल 1927 में उन्हें कोलंबंनिया यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें पीएचडी की डिग्री दी गई। आंबेडकर के लिए यह सफर इतना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने सामाज के आगे घुटने नहीं टेके और यही कारण है कि वह निरंतर आगे बढ़ते गए।

आंबेडकर के 10 अनमोल विचार
आंबेडकर के 10 अनमोल विचार:
-जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं।
-कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।
-जो कौम अपना इतिहास तक नही जानती है वे कौम कभी अपना इतिहास भी नही बना सकती है
-शिक्षित बने, संघटित रहे और संघर्ष करे
-उदासीनता एक ऐसे किस्म की बीमारी है जो किसी को प्रभावित कर सकती है
-यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
-हम सबसे पहले और अंत में भी भारतीय है
-मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए।
-मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं।
-बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
-जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं।
-कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।
-जो कौम अपना इतिहास तक नही जानती है वे कौम कभी अपना इतिहास भी नही बना सकती है
-शिक्षित बने, संघटित रहे और संघर्ष करे
-उदासीनता एक ऐसे किस्म की बीमारी है जो किसी को प्रभावित कर सकती है
-यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
-हम सबसे पहले और अंत में भी भारतीय है
-मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए।
-मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं।
-बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
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